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 रामचरितमानस और मानस-रोग


इन दिनो Dr.Hammer theory (GERMAN NEW MEDICINE) की चर्चा है

इस चर्चा को homeopathy में  लाने का श्रेय प्रफुल्ल विजयकर सर को जाता है

पिछले 4-5 सालों से हम सब इस theory को पढ़ रहे है

 

पर किसी शारीरिक बीमारी का कारण मानसिक होता है ये बात DR.HAHNEMANN सर बहुत सालों पहले बता गये थे

 

पर उनसे भी पहले इस तरह के सिद्धांत की बात तुलसीदास जी ने अपने कालजयी ग्रंथ रामचरितमानस में  की है

मै आज उन्ही चौपाइयों को बताना चाहता हूँ जिनमे उन्होंने बीमारी और उनके मानसिक करणो की चर्चा की है

हालाँकि चर्चा काफ़ी छोटे रूप मै है पर वो हमें हिंट देती है, मै और भी पुराने ग़्रंथो मै इसे खोजने की कोशिस करूँगा, और आपसे share करूँगा!

 

 

1-मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥

 

सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञानहै। उन व्याधियों से फिर और बहुत-से शूल उत्पन्न होते हैं।

काम वात है,

लोभ अपार (बढ़ा हुआकफ है

और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है।

 

2-प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई॥

बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना॥

 

यदि कहीं ये तीनों भाई (वातपित्त और कफप्रीति कर लें (मिल जाएँ),

तो दुःखदायक सन्निपात रोग उत्पन्न होता है।

कठिनता से प्राप्त (पूर्णहोनेवाले जो विषयों के मनोरथ हैंवे ही सब शूल (कष्टदायक रोगहैंउनके नाम कौनजानता है (अर्थात वे अपार हैं)

3-ममता दादु कंडु इरषाई। हरष बिषाद गरह बहुताई॥

पर सुख देखि जरनि सोइ छई। कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई॥


ममता दाद है,

 ईर्ष्या (डाहखुजली है,

हर्ष-विषाद गले के रोगों की अधिकता है (गलगंडकंठमाला या घेघा आदि रोग हैं),

 पराए सुख को देखकर जो जलन होती हैवही क्षयी है।

 दुष्टता और मन की कुटिलता ही कोढ़ है।


4-अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ॥

तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुन तिजारी॥

अहंकार अत्यंत दुःख देनेवाला डमरू (गाँठ कारोग है।

दंभकपटमद और मान नहरुआ (नसों कारोग है।

 तृष्णा बड़ा भारी उदर वृद्धि (जलोदररोग है।

 तीन प्रकार (पुत्रधन और मानकी प्रबल इच्छाएँ प्रबल तिजारी हैं।


5-जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लगि कहौं कुरोग अनेका॥

मत्सर और अविवेक दो प्रकार के ज्वर हैं। इस प्रकार अनेकों बुरे रोग हैंजिन्हें कहाँ तक कहूँ।

6-दो० - एक ब्याधि बस नर मरहिं  असाधि बहु ब्याधि।

 पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥

एक ही रोग के वश होकर मनुष्य मर जाते हैंफिर ये तो बहुत-से असाध्य रोग हैं। ये जीव को निरंतर कष्ट देते रहतेहैंऐसी दशा में वह समाधि (शांतिको कैसे प्राप्त करे

 

कुछ कठिन शब्दों के अर्थ-


1-व्याधियाँ=बीमारी

2-शूल=pain/दर्द

3-सन्निपात-सन्निपात (delirium) जिसे मूर्छा या बेसुधी भी कह सकते हैंएक तात्कालिक लेकिन जीवन पर गंभीरसंकट लाने वाली स्थिति है जिससे मानसिक स्थिरता और चेतना पर बहुत तीखा उतारचढ़ाव  जाता हैइससेपीड़ित मरीज़ को अपने आसपास का कोई ख्याल नहीं रह जातावह सुधबुध खो बैठता है और उसकी सोच भ्रमित होजाती हैसन्निपात अचानक ही होता है और कुछ घंटों में या दिनों में व्यक्ति के सोच और व्यवहार में उल्लेखनीयबदलाव  जाते हैं.

4-वातपित्कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। इन तीनों को धातु भी कहा जाता है। धातु इसलिये कहा जाता हैक्योंकि ये शरीर को धारण करते हैं। चूंकि त्रिदोषधातु और मल को दूषित करते हैंइसी कारण से इनको ‘दोष’ कहतेहैं।

 

आयुर्वेद साहित्य शरीर के निर्माण में दोषधातु मल को प्रधान माना है और कहा गया है कि 'दोष धातु मल मूलं हिशरीरम्' आयुर्वेद का प्रयोजन शरीर में स्थित इन दोषधातु एवं मलों को साम्य अवस्था में रखना जिससे स्वस्थव्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहे एवं दोष धातु मलों की असमान्य अवस्था होने पर उत्पन्न विकृति या रोग कीचिकित्सा करना है।

5- उदरगुहा में द्रव संचय होकर उदर (पेट) का बड़ा दिखना जलोदर (Ascites) कहलाता है।

6- तिजारी -हर तीसरे दिन आनेवाला ज्वर या बुखार जो मलेरिया का एक प्रकार है

7- मत्सर-द्वेष, विद्वेष।

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